जैन धर्म में णमोकार मंत्र

Abhishek Jain
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णमोकार मंत्र  जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। इसे 'नवकार मंत्र ', 'नमस्कार मंत्र ' या 'पंच परमेष्ठि नमस्कार' भी कहा जाता है। इस मन्त्र में अरिहन्तों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं का नमस्कार किया गया है।

णमोकार महामंत्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, किंतु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का ही दर्शन, स्मरण, चिंतन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है।


जैन धर्म का महामंत्र

इसलिए यह अनादि और अक्षयस्वरूपी मंत्र है। लौकिक मंत्र आदि सिर्फ लौकिक लाभ पहुँचाते हैं, किंतु लोकोत्तर मंत्र लौकिक और लोकोत्तर दोनों कार्य सिद्ध करते हैं। इसलिए णमोकार मंत्र सर्वकार्य सिद्धिकारक लोकोत्तर मंत्र माना जाता है।

नवकार मंत्र - अर्थ सहित

णमो अरहंताणं - अरिहंतों को नमस्कार हो।

णमो सिद्धाणं - सिद्धों को नमस्कार हो।

णमो आइरियाणं - आचार्यों को नमस्कार हो।

णमो उवज्झायाणं - उपाध्यायों को नमस्कार हो।

णमो लोए सव्व साहूणं - इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।

नवकार मंत्र के अन्य नाम

मूलमंत्र: यह मंत्र सभी मंत्रों में मूल अर्थात जड़ है।

महामंत्र: यह सभी मंत्रों में महान है।

पंचनमस्कार मंत्र: इस में पांचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।

अनाधिनिधन मंत्र: यह अनादिकाल से है तथा अनंत काल तक रहेगा क्योंकि पंचपरमेष्ठी अनादिकाल से होते आते हैं तथा अनंत काल तक होते रहेंगे।

मृत्युंजयी मंत्र: इस पर सच्चा श्रद्धान करने से व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है।

इसे पंचपरमेष्ठी मंत्र, सर्वसिद्धिदायक मंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है।


॥ इति ॥

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